Thursday, May 2, 2019

क्या अटल की नक़ल कर रहे हैं राजनाथः नज़रिया

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह भगवा ताक़तों की तरफ़ से पैदा हुए नफ़रत और संदेह भरे माहौल के बीच ख़ुद को अटल बिहारी वाजपेयी जैसे राजनेता के तौर पर पेश करने की कोशिशों में लगे हैं.
संभवतः अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के अंतिम ऐसे नेता रहे जिन्हें उदारवादी व्यक्तित्व का माना जाता है.
यह तो वक़्त ही बताएगा कि राजनाथ सिंह की कोशिशें लखनऊ में मौजूद उनके समर्थकों को कितनी रास आती हैं, जहां से वो एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरे हैं.
क्या लखनऊ के लोग वाजपेयी की तरह राजनाथ को एक बार फिर उतनी ही सहृदयता से स्वीकार करेंगे?
इस सवाल का जवाब भले ही वक़्त के गर्भ में छिपा हो लेकिन राजनाथ सिंह के प्रचार को देखते हुए लगता है कि वे धर्म और जाति से ऊपर उठते हुए ख़ुद को लोगों के बीच का एक आम व्यक्ति साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.
राजनाथ सिंह की राजपूत वोट बैंक में पहले से ही एक बनी-बनाई छवि रही है, लेकिन उन्होंने ब्राह्मण और कायस्थ मतदाताओं को भी लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. इन दोनों ही जातियों को लखनऊ में महत्वपूर्ण वोट बैंक के तौर पर समझा जाता है.
इन सबके बीच बीते मंगलवार को राजनाथ सिंह ने कुछ ऐसा किया जिसने उनके कई क़रीबियों और विरोधियों को अचरच में डाल दिया.
राजनाथ ने पूरा दिन लखनऊ में मौजूद अलग-अलग इस्लामिक धार्मिक नेताओं के बीच बिताया. उनके दिन की शुरुआत ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना क़ल्बे सादिक़ से मुलाक़ात के साथ हुई.
अतंरराष्ट्रीय स्तर पर शिया विद्वान के तौर पर पहचाने जाने वाले मौलाना सादिक़ इन दिनों बीमार होने की वजह से अस्पताल में भर्ती हैं.
इसके बाद राजनाथ सिंह का अगला पड़ाव पहुंचा ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना मोहम्मद अशफ़ाक़ और उनसे दूसरे स्थान पर मौजूद मौलाना याशूब अब्बास के निवास स्थान पर.
इसके साथ ही वे जाने माने शिया धार्मिक गुरु मौलाना आग़ा रूही के पास भी पहुंचे. कुछ-कुछ ऐसा ही रास्ता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी अपनाते थे. जिनके लिए माना जाता था कि उन्हें लखनऊ में मौजूद शिया मुसलमानों का अच्छा समर्थन प्राप्त होता है.
इसी तरह से तीन दिन पहले राजनाथ सिंह ने एक और प्रमुख शिया नेता मौलाना क़ल्बे जव्वाद से मुलाक़ात की थी. मौलाना क़ल्बे जव्वाद ने एक आम सभा में राजनाथ सिंह को समर्थन देने की घोषणा भी की और कहा, ''मैं हर अच्छे इंसान का समर्थन करता हूं और इसमें कोई शक नहीं कि राजनाथ सिंह एक अच्छे इंसान हैं.''
इसके बाद राजनाथ सिंह ने सुन्नी धर्मगुरुओं का रुख़ भी किया, क्योंकि भले ही लखनऊ में शिया मुसलमान अच्छी तादाद में रहते हों लेकिन फिर भी वे सुन्नियों से ज़्यादा नहीं हैं.
यही वजह है कि जब राजनाथ सिंह लखनऊ के इमाम और सबसे पुराने स्थानीय इस्लामिक संस्थान फ़िरंगी महल के प्रमुख मौलाना ख़ालिद रशीद के घर पहुंचे तो किसी को हैरानी नहीं हुई.
रशीद ने हालांकि दावा किया कि राजनाथ सिंह किसी राजनीतिक मक़सद से उनके पास नहीं आए थे.
उन्होंने कहा, ''राजनाथ सिंह मेरे पिता मौलाना अहमद मियां के काफ़ी क़रीबी रहे हैं इसलिए वे यहां आए, इस मुलाक़ात के कोई राजनीतिक मायने नहीं हैं.''
इन तमाम दौरों की अंतिम छाप के तौर पर राजनाथ सिंह नदवतुल-उलेमा पहुंचे. यह भारत का सबसे पुराना इस्लामिक संस्थान है जिसे नदवा के नाम से जाना जाता है. इस संस्थान में दुनियाभर से मुस्लिम छात्र पढ़ने आते हैं.
यहां राजनाथ सिंह ने नदवा के प्रमुख 80 बरस के मौलाना राबे हसन नदवी से मुलाक़ात की.